शहर की गंदगी अब एक तरह से ब्रांड बन चुकी है। चैनल वाले उसे इतने ऐंगल से घुमा- घुमाकर दिखा चुके हैं कि अब गंदगी का सारा ग्लैमर खत्म हो चुका है। इतने मनोयोग से शायद फैशन परेड का कवरेज भी नहीं करते होंगे। खैर, इधर सुनने में आया है कि गंदगी से अब सरकार, विपक्ष, अधिकारी और पीडि़तों से लेकर नॉन पीडि़तों तक के सब्र का पैमाना भर चुका है। यही नहीं बरसों पूर्व स्वर्गीय हो चुके स्वनामधन्य वैज्ञानिक भी इस गंदगी से चिंतित हैं।
पिछले दिनों इन वैज्ञानिकों की आत्माओं का एक अखिल ब्रह्मांड सम्मेलन अंतरिक्ष के गांधी मैदान में हुआ। सम्मेलन में मुजफ्फरपुर की गंदगी, अतिक्रमण, वसूली, बिजली, पानी, कूड़ा- कचरा, जलजमाव, अस्पताल आदि समस्याओं पर भी विचार किया गया। चूंकि ये विश्लेषण चोटी के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया, इसलिए इसे 'चोटी का वैज्ञानिक विश्लेषण' नाम दिया गया।
महान वैज्ञानिक आइंसटीन का मानना था कि मई के महीने में साढ़े तीन सौ प्रकाश वर्ष दूर स्थित आकाशगंगा के उल्कापिंड धरती पर अस्सी डिग्री देशांतर से दशमलव पंद्रह मिलीमीटर ईस्ट में गिरते हैं। ये जगह ठीक वहां है, जहां अघोरिया बाजार का नाला गिरता है। लेकिन दिखता नहीं क्योंकि उस पर अतिक्रमण किया गया है। अत: जब तक तीन अरब साल से जारी उल्कापिंडों की इस बारिश को कर्क रेखा से पौने पांच सौ वर्ग माइक्रोमीटर देशांतर में शिफ्ट नहीं किया जाएगा, तब तक कल्याणी चौक के जाम की समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
ये सुनकर आर्कमिडीज की आत्मा को क्रोध आ गया। वह बिगड़कर बोली- 'जलजमाव का मुझसे ज्यादा तजुर्बा है आपको। मैं तो डिक्लेयर्ड साइंटिस्ट ही वहीं हुआ।' खैर, दादा आर्कमिडीज ने जो फार्मूला बताया, उसके अनुसार जलजमाव प्रभावित क्षेत्रों की टोटल गंदगी को नालों की सिल्ट में जोड़ने के बाद उसमें नगर निगम के कुल कर्मचारियों की संख्या का गुणा करने पर जो संख्या ज्ञात होगी, उसमें अघोरिया बाजार के आयतन का भाग दे दें। इस भागफल और भारत के अंतरिक्ष भाग्यफल में जो अनुपात है, उससे क्षेत्र की कुल गंदगी का पता लगाया जा सकता है। और तब ही इसका समाधान हो सकता है।
गुरुत्वाकर्षण के नियम यदि न्यूटन ने खुद न बनाये होते तो इस वक्त वहां दरोगा जी फौजदारी का मुकदमा लिख रहे होते। बात ही कुछ ऐसी कही थी आर्कमिडीज ने, जिसे सुनकर न्यूटन का खून खौलने की इजाजत मांगने लगा। आर्कमिडीज का फार्मूला उन्होंने सुना। एकदम असहमत थे उससे। उनके हिसाब से भारत का अंतरिक्ष भाग्यफल और अघोरिया बाजार की गंदगी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सर आइजक का मानना था कि ये सब क्रिया की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप है। यदि अघोरिया बाजार को उसी तरह पलटा जा सकता, जिस तरह पैजामा सीधा करके पहना जाता है तो निश्चित रूप से वहां पांच अरब साल ईसा पूर्व हुए जलजमाव के निशान मिल जाएंगे। वर्तमान संकट तो तत्कालीन दमन की प्रतिक्रिया भर है। हालांकि दुनिया को गति के नियमों से परिचित कराने वाला महान वैज्ञानिक इस बात पर अवश्य हैरान था कि नगर निगम के कार्य की गति कौन से नियम से प्रतिपादित होती है।
इसके बाद सम्मेलन में गैलीलियो, राबर्ट बंधु, मार्कोनी, ग्राहम बेल, वगैरह- वगैरह ने भी अपने- अपने शोधपत्र पढ़े। जिनसे निष्कर्ष निकला कि जब तक शहर के आपेक्षिक घनत्व और नगर निगम की आद्रता की रासायनिक प्रतिक्रिया होती रहेगी, तब तक इस समस्या का समाधान निकलना मुश्किल है। मुख्यमंत्री कर लें तो भले कर लें।
Wednesday, April 21, 2010
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