Sunday, July 10, 2022

सीनियर सिटीजन प्ले ग्रुप स्कूल

सीनियर सिटीजन प्लेग्रुप स्कूल --------------------------- खुल गया! खुल गया!! खुल गया!!! आपके शहर लखनऊ में बुज़ुर्गों का माकूल ठिकाना...बोले तो...स्कूल खुल गया। आपके दांत गिर चुके हों। नकली डेंचर लगा हो। पैर चलने को उधार मांगते हों। सांस फूलती हो। डिसेंट डिसेंट्री के मरीज़ हों या धैर्य धराऊ कब्ज़ के। बायपास सर्जरी शुदा हों या डायलिसिस के शौकीन। ख़िज़ाब, बालों से या हड्डी, खाल से पनाह मांग रही हो। हाथों पर फ़ालिज का फ़ौरी हमला हो या पांव कब्र में लटकने के मुन्तज़िर। तो भी न घबराने की ज़रूरत है, न झिझकने की। ज़िंदगी चुक चुकी हो तो भी ये मौक़ा मत चूकें। नए-नए बुड्ढे हों या सेकंड हैंड जवान। पेंशन पाते हों या लड़का-बहू की लात या दोनों। सबके लिए समान अवसर। वृद्धों और वृद्धियों में कोई भेदभाव नहीं। को-एजुकेशन की व्यवस्था। हमारे शहर में जब से ये स्कूल खुला, वरिष्ठ नागरिकों में खुशी की लहर दौड़ गई। ख़िज़ां को फटकने की दावत देते चेहरों पर बहार आ गई। अपने ज़माने के नामी-गिरामी बैक बेंचर, स्कूल में कुकड़ूं कूं की अलाप लगाने वाले चिकन और चिकन गुनिया, हर क्लास में कई-कई साल टिककर ठोस पढ़ाई करने वाले अनुभवी फेलियरों की तो लॉटरी लग गई। बंटी की दादी हों या पिंकू के दादा, सबका मनपसंद शगल बन गया-सीनियर सिटीजन प्ले ग्रुप स्कूल। ये स्कूल सुबह बुज़ुर्गों द्वारा ऊपर वाले को याद करने के साथ शुरू होता है ताकि ऊपर वाला उन्हें याद न कर ले। फिर 'गया' एक-एक बुड्ढे-बुड्ढी को हाथ पकड़कर उनकी क्लास में पहुंचाता है। पहले इस काम के लिए 'आया' को रखा गया था। लेकिन स्कूल खुलने के दो दिन बाद ही, विधुर होने की हैट्रिक जड़ चुके एक बुज़ुर्गवार 'आया' को लेकर 'गया' हो गए। उसके बाद से 'आया' के काम के लिए 'गया' को रख लिया गया। क्लास का सीन ये होता है कि ज़मीन पर रखी कुर्सी-मेज़ों, गद्दों और गाव-तकियों पर बुज़ुर्ग वार अपने-अपने गिलास-कटोरे और चुसनी के साथ रखे हैं। करीब-करीब हर छात्र-छात्रा के कान और नाक चश्मे की गिरफ्त में हैं। टीचर ब्लैक बोर्ड पर एक गोला बनाकर पूछते हैं, "ये क्या है?" खैनी मलता एक छात्र जवाब देता है, "संडास"! दूसरा जवाब, हिलती गर्दन वाले सिर में जड़े मुंह से आता है, "मैनहोल"! ज़बरदस्त नज़ले से परेशान तीसरा मुंह नाक का तोहफ़ा ज़ुबान से रोकने की कोशिश करते हुए बोल पड़ता है, "उल्टा तवा!" इसके बाद कोई सवाल-जवाब नहीं होता। अब बाबा लोगों का बीपी और दादी लोगों की शुगर चेक करने का टाइम है। आया की जगह रखा गया 'गया' इसे अंजाम देता है। फिर वह सारे स्टूडेंट्स के कान पर जाकर घंटा बजाता है क्योंकि कुछ ऊंचा सुनते हैं, कुछ बिल्कुल नहीं और कुछ के कान रिपेयरिंग और ओवरहालिंग मांगते हैं। पीरियड ओवर। अगला पीरियड पीटी का है। सबको फिर उंगली या हाथ पकड़कर मैदान में लाया जाता है। बाबा आरामदेव के कज़िन विरामदेव ये पीरियड लेते हैं। सब छात्र-छात्राएं ज़मीन पर बैठकर अनुलोम-विलोम, कपालभांति और सूर्य नमस्कार करते हैं। सूर्य नमस्कार करने में कुछ छात्रों के हाथ-पैर आपस में उलझ जाते हैं। उन्हें सुलझाने के लिए डॉक्टर झटका को डिस्पेंसरी सहित बुला लिया जाता है। एक दिन स्कूल में बदन पर अचकन-चूड़ीदार पैजामा, सिर पर दुपल्ली टोपी, पैरों में कामदार जूतियों में पैबस्त, हाथों में छड़ी लिए लहराते-झूमते, 70 के फेंटे में फिंटे हुए एक बड़े मियां नमूदार हुए। उनके साथ चार कारिंदे भी थे। एक के हाथ में हुक्का, दूसरे के पानदान और तीसरे के उगालदान था। चौथा आगे-आगे रास्ते में झाड़ू देता चल रहा था। ये पूरा काफ़िला बिना किसी की इजाज़त लिए प्रिंसिपल के कमरे में घुस गया। बड़े मियां ने अपनी तशरीफ़ कुर्सी पर टिकाने के बाद एक कारिंदे को इशारा किया। "हुज़ूर अवध के उजड़े नवाबी ख़ानदान से ताल्लुक रखते हैं," कारिंदे ने बड़े मियां की शान में कसीदे पढ़ते हुए आगे कहा, "आपके मदरसे में तालीम लेने की गरज़ से दाखिले के ख्वाहिशमंद हैं। ये देखिए हुज़ूर का नवाबी सर्टिफिकेट," कहकर कारिंदे ने दो डंडियों के सहारे शनील के कपड़े में लिपटा एक कागज़ प्रिंसिपल साहब के आगे रख दिया। प्रिंसिपल ने उसे उठाकर पढ़ा, फिर एक नज़र नवाब साहब को देखा और बोले, "ये तो नूर मंज़िल का प्रिस्क्रिप्शन है...क्या नवाब साहब का दौलतखाना वहीं है या वहां इलाज फ़रमां हैं?" "नहीं जनाब, हुज़ूर अब बिल्कुल ठीक हो चुके हैं। आपको यक़ीन न हो तो उन डॉक्टर साहब से दरयाफ्त कर लें, जिन्होंने हुज़ूर का इलाज किया था और इन्हें ठीक करने के बाद अब अपना इलाज करवा रहे हैं।" "उसकी ज़रूरत नहीं है," प्रिंसिपल ने दुपल्ली टोपी के नीचे टंके चेहरे को ग़ौर से देखते हुए आगे कहा, "मैं नवाब साहब को पहचान रहा हूं...नूर मंज़िल में ये मेरे रूम मेट हुआ करते थे। इनके आ जाने से हमारे स्कूल की बिल्डिंग में शौहरत के चार चांदों समेत और भी सितारे जड़ जाएंगे।" इसके बाद नवाब साहब का दाखिला हो गया। बड़े मियां यानी नवाब साहब कुर्सी से उठते हुए सिर्फ़ इतना बोले, "हम कल से आपकी अंजुमन की रौनक बढ़ाएंगे...क्लास में चार अदद स्टूलों का भी इंतज़ाम रखिएगा।" "स्टूल किसलिए?" "हमारे कारिंदों के लिए।" "कारिंदो का क्लास में क्या काम?" "एक हमारा हुक्का सुलगाएगा। दूसरा, टीचर के सवाल समझकर हमें समझाएगा। तीसरा, होमवर्क न करने पर हमारे एवज में मुर्गा बनेगा और चौथा रिज़र्व में पड़ा रहेगा।" नवाब साहब का जवाब सुनकर प्रिंसिपल साहब बेहोश हो गए। उन्हें फिर से नूर मंज़िल में भर्ती करवा दिया गया। ताज़ा जानकारी मिलने तक स्कूल बंद था। जैसे ही कुछ नया पता लगेगा, आपको इत्तिला दी जाएगी। - कमल किशोर सक्सेना

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