Monday, July 18, 2022

एक असली शेर से मुलाकात

एक असली शेर से मुलाकात ------------------------------ हमारे देश में मुख्यत: दो तरह के 'शेर' पाए जाते हैं, एक सिट्टी-पिट्टी गुम करने वाले और दूसरे शायरी में 'अर्ज़' किए जाने वाले। पहले को देखकर मुंह से 'आह' निकल जाती है और दूसरे को सुनकर 'वाह'! दूसरे वाले सिर्फ़ मुशायरों-महफिलों या शायरों के दीवानों में मिलते हैं लेकिन पहले वाले नोट-सिक्के, बच्चों की किताबों, सरकारी इमारतों-दस्तावेजों से लेकर चिड़ियाघर तक में उपलब्ध होते हैं। इन्हें जंगल का राजा भी कहा जाता है। लेकिन जबसे जंगल कट गए हैं, राजा साहब के रुतबे और संख्या, दोनों में कमी आ गई है। बेचारे प्रीविपर्स के सहारे ज़ू में ज़िंदगी बिता रहे हैं। पहले ये सर्कस में भी पाए जाते थे किंतु पशुओं के 'मानवाधिकार' का मुद्दा उठने के बाद से सर्कस में इनका भूगोल, इतिहास हो गया। वैसे तो अब सर्कस भी इतिहास बनते जा रहे हैं। मांएं अक्सर अपने बच्चों को सुलाने के लिए शेर के नाम का प्रयोग करती हैं। बच्चा जब तक मोबाइल गेम वाले शेर से परिचित नहीं होता, सो भी जाता है। उसके बाद ख़ुद शेर हो जाता है और मां को सुला देता है। शेर हमारा राष्ट्रीय प्रतीक भी है। इस प्रकार हम देखते हैं कि शेर के कई उपयोग हैं। ये तो अच्छा है कि ये सारी बातें शेर को नहीं पता वरना कबका रॉयल्टी की मांग कर चुका होता। आजकल इसको मुद्दा बनाकर भी उपयोग किया जा रहा है। मज़े की बात तो ये है कि शेर को मुद्दा बनाने वालों में कुछ गीदड़, रंगे सियार, गिरगिट और आंसू बहाने वाले घड़ियाल भी शामिल हैं। देश के नए संसद भवन के शीर्ष पर स्थापित किए जाने वाले शेरों की मुख मुद्रा कुछ लोगों को पसंद नहीं आ रही है। उनका मानना है कि ये शेर आक्रामक हैं, जबकि मूल कृति सारनाथ वाले शेर सौम्य हैं। अजीब तर्क है। शेर मूलतः एक हिंसक जानवर है। नव रस की दृष्टि से, उस पर स्वाभाविक रूप से रौद्र, वीर, भयानक और वीभत्स रस शोभा देते हैं। यदि कोई उसमें श्रृंगार, हास्य, करुण, अद्भुत और शांत रस देखना चाहे तो उसकी बुद्धि पर 'तरस' खाने का दिल करता है। ख़ैर, मामले को तूल पकड़ता देखकर आखिर हमारे भीतर का भी शेर...मतलब पत्रकार जाग गया और हम अपना बीमा कराने के उपरांत जा पहुंचे शेर की मांद में। पहुंच तो गए किंतु उसे देखते ही हाथों से तोते उड़ गए...सारी हिम्मत काफूर हो गई। हमें घबराया देखकर राष्ट्रीय पशु, राष्ट्र भाषा में बोला, "तुम्हारा परिचय?" "हम आपके साढू भाई।" "क्या मतलब?" वह बोला। "मतलब शादी से पहले हम भी शेर थे," हमने जवाब दिया। ये सुनकर वह इतनी विकराल हंसी हंसा कि हम सहम गए। आगे बोला, "डरो मत! चले आओ...सावन शुरू हो चुका है इसलिए एक महीने के लिए मैंने नॉन वेज छोड़ दिया है।" "नॉन वेज छोड़ दिया या माहौल देखकर डर गए?" "डरता तो मैं किसी के बाप से भी नहीं," शेर दहाड़ा फिर अचानक धीमे स्वर में बोला, "पत्नी को छोड़कर...मुद्दे पर आओ।" "मुद्दे की ही बात कर रहे हैं। कुछ लोगों को आपकी भाव भंगिमा पर आपत्ति है। उनका कहना है कि पहले आप सौम्य और शांत थे...अब दहाड़ रहे हैं?" "नासमझ हैं वे, जो ऐसा कहते हैं। तुमने अक्षय कुमार के मुंह से वो कहावत तो सुनी ही होगी कि शेर जब दो कदम पीछे लेता है तो लंबी छलांग लगाने के लिए...न कि भागने के लिए। उस सारनाथ वाली 'सौम्यता' को तुम पीछे वाले दो कदम समझो। अब 'स्टार्टअप नाथ' वाला, दहाड़ने का दौर है। पिछली सरकार में तुमने 'सिंह' को भीगी बिल्ली बनकर 'म्याऊं-म्याऊं' करते देखा होगा...अब वो दिन लद गए जब खलील खां फाख्ता उड़ाया करते थे। ये नए ज़माने का भारत है... मैं ऑनलाइन और ऑफलाइन, दोनों तरह से दहाड़ सकता हूं...लेकिन महाराजा दुष्यंत और उनके पुत्र भरत के समय के कुछ संस्कार अभी शेष हैं इसलिए केवल प्रतीक रूप में दहाड़ा हूं।" शेर अपनी रौ में बोले जा रहा था। ऐसा लगता था उसे काफ़ी दिन बाद बोलने का मौका मिला है या शायद भाभी जी...मतलब शेरनी उस वक्त मांद में नहीं थीं। शेर जी वाकई शेर बन गए थे। आगे बोले, "मेरी जिस पुरानी सौम्य फ़ोटो की चर्चा हो रही है, वह उस ज़माने की है, जब न टेलीफोन होता था...न कैमरा। इंसान ही नहीं, जानवर भी सीधे साधे होते थे। मूर्तिकार या चित्रकार जिस मुद्रा में मॉडल को बैठा देते, बैठे रहते थे। अब मोबाइल का दौर है। सेल्फी का ज़माना है और तुम जानते हो कि उल्टा-सीधा मुंह बनाए बिना सेल्फी अच्छी नहीं आती। मैंने भी सेल्फी ली और लोगों ने मुख मुद्रा को लेकर बखेड़ा खड़ा कर दिया।" हमने विषय बदलने की गरज से अगला सवाल किया, "श्रीलंका में रहने वाला आपका कज़न आजकल बड़ी मुसीबत में है...आप उसकी कुछ मदद क्यों नहीं करते?" "भारत सरकार कर तो रही है मदद। वैसे भी ड्रेगन से दोस्ती का यह नतीजा तो होना ही था...होइहि सोइ जो राम रचि राखा, को करि तर्क बढ़ावै साखा।" कहकर शेर ने तो चुप्पी साध ली किंतु गुफ़ा के मुहाने से ज़ोरदार दहाड़ सुनाई दी। दहाड़ श्रीमती शेर की थी। उन्होंने हमारा गिरेबान पकड़कर पूरा जबड़ा खोला ही था कि आंख खुल गई। सामने लाल-लाल आंखें लिए हमारी पंजीकृत शेरनी ... अर्थात पत्नी खड़ी थीं और हम औकात में आ चुके थे। - कमल किशोर सक्सेना

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