Tuesday, December 21, 2010

'पÓ से 'प्याजÓ, 'लÓ से 'लहसुनÓ

मेरे सामने एक प्याज है। इसे मैं एक हफ्ते से टकटकी लगाकर देख रहा हूं कि आखिर बनाने वाले नेे क्या सोचकर इसे 'टियर गनÓ थमा दी। वरना, कितनी खूबसूरत फिगर है। ज्यों-ज्यों कपड़े उतरते जाते हैं, त्यों-त्यों निखार आता जाता है। लेकिन, इतनी मस्त अदाओं वाला प्याज इस समय सबको जार-जार रुला रहा है।
मैं भी रो रहा हूं। एक हफ्ते से सोच रहा हूं कि परिवार के इस इकलौते प्याज को खर्च करूं या ड्राइंग रूम में सजा दूं। किचेन के स्तर से तो ऊपर उठ चुका है वो। पक्का फ्रेम करवाकर दीवार पर लगवाने का इरादा इसलिए नहीं है कि अभी मुझे प्याज के किचेन में वापस लौटने की उम्मीद है। आशावादी हूं न। इसीलिए।
खैर, इसे इसके एक किलो साथियों के साथ पिछले महीने खरीदा था सब्जीमंडी से। बाकी साथी तो पेट की जंग की भेंट चढ़ गए। अब ये इकलौता बचा है। मेरी आंखों का नूर, मेरा कोहिनूर, जाने-जिगर, घर का इकलौता चिराग, चश्मे-बद्दूर। कहने की जरूरत नहीं कि आजकल मैं प्याज की पूजा रहा हूं। खाने के लिए सोचना भी पाप है। लहसुन भी इन दिनों प्याज का मौसेरा भाई बनकर उभरा है।
खाते-पीते घरों के लोग जानते हैं कि लहसुन-प्याज विहीन भोजन करना कितना कष्टप्रद होता है। फिर मैं तो उस खानदान को बिलांग कराता हूं, जहां बकरे का मतलब बिरयानी और लेग पीस का मतलब सिर्फ मुर्गा समझा जाता है। और, दुनिया के तमाम बावर्चीखाने गवाह हैं कि बिना लहसुन-प्याज के बकरे, मुर्गे तो छोडिय़े, झींगा मछली तक कुकर में जाने को राजी नहीं होती।
कल मेरे कुकर ने मुझसे पूछा- कितने दिन मुझे और दाल-भात पर जिंदा रहना पड़ेगा। तुम्हें शाकाहार का संदेशा देना हो तो शौक से दो लेकिन मुझे तो हफ्ते में मिनिमम दो दिन नॉन वेज चाहिए ही चाहिए। कहते हुए कुकर के ढक्कन से लार टपकने लगी। मुझे अफसोस भी हुआ। बेचारा कुकर। यही तो दिन हैं इसके खाने-खेलने के। ऐसे अनेक अवसर आये, जब कुकर का मन नहीं होता था तो भी बकरे का भेजा या मुर्गे की टांग जबर्दस्ती उसमें घुस जाते थे। प्रेशर लगाना पड़ता है। मजबूरी है। आप ही बताइये, वह कौन पत्थर दिल पेटू होगा जो ये सीन देखकर कुकर में सीटी न लगा दे। यही हाल कड़ाही का था। मछली के मूड़ों के बीच खेली-पढ़ी मेरी कड़ाही को आजकल पालक और करमकल्ले से काम चलाना पड़ रहा था। मिक्सी कल पूछ रही थी कि क्या मुझे खाली जूस निकालने के लिए रख छोड़ा है। आजकल मसाला क्यों नहीं पीसते। प्याज महंगा है तो चटनी ही पीस लो। भारी दिन चल रहे हैं क्या। अब मैं इस कम्बख्त कड़ाही और मिक्सी को कैसे समझाऊं कि हम जैसे आम आदमियों के लिए इससे भारी दिन और क्या होंगे।
प्याज महंगा होने से केवल किचेन का ही कुकर नहीं रो रहा है। कूकुर अर्थात कुत्ते भी रो रहे हैं। जो बंगलों की चारदीवारी में बंद रहते हैं, उनकी बात मैं नहीं जानता लेकिन गली के कुत्तों का तो स्वाद चला गया है। कल मैंने कूड़े के ढेर के पास एक कुत्ते को बेमन से टहलते देखा। भोज्य पदार्थों, अंत: और वाह्य वस्त्रों के टुकड़ों, कॉस्मेटिक सामान और कम्प्यूटर के पुर्जों सहित कई चीजें उस कूड़े की शोभा बढ़ा रही थीं लेकिन कुत्ते के चेहरे से उदासी की पर्तें हट नहीं रही थीं। पास ही एक सुअरिया अपनी दिनचर्या जी रही थी। सुअरिया तृप्त होकर खुश थी। कुत्ता उदास। एक तरफ आशा की ताल-तलैया थी। दूसरी तरफ निराशा की सुनामी। एक ओर मुंह लटकाये कुत्ता था तो दूसरी ओर चहचहाती-इठलाती सुअरिया। इधर खुशी, उधर मातम।
थोड़ी देर में सुअरिया ने कुत्ते से पूछा- 'कुत्ता सर! अब तो फिर एनडीए की सरकार बन गई है। लोगों में खौफ नहीं है। वे आधी रात तक घूमने-फिरने लगे हैं। अब तुम्हारे पास उन्हें काटने और भौंकने का चौबीसों घंटों इस्कोप है। चारों ओर सुशासन की बयार नहीं बल्कि आंधी चल रही है। कल मैं टहलते हुए नदी तक चली गयी थी। वहां कई सरकारी कर्मचारी एक अजगर से काम करवाने पर तुले थे। लेकिन वह भी था सरकारी अजगर। वह भी उस जमाने का, जब विभागों में काम न करने का रिवाज था। अजगर टस से मस होने को तैयार न था। इधर कर्मचारियों को भी नया-नया डीए मिला था। वे भी डीए के जोश में थे। बड़ी जोर-आजमाइश हुई। लेकिन होइये वही जो राम रचि राखा। अर्थात, इस युद्ध में विजय की जयमाला अजगर के गले में पड़ी। कर्मचारी ये कहते हुए वापस लौट गए कि दो बार डीए और बढऩे दो। इतने में तो इसे हिलाना भी मुश्किल है। खैर, उस अजगर से मेरी काफी देर बात हुई। तमाम मुद्दों पर। वह आजकल बीमार है। अल्ट्रासाउंड कराया था। डॉक्टर का कहना है कि बिना प्याज का मीट-मछली खाने से इसके पेट में इनफेक्शन हो गया है। दवा चल रही है। सुबह-शाम हरे प्याज वाला सागा खा रहा है और दूध में च्यवनप्राश ले रहा है।Ó
सुअरिया ने ढेर पर आकर गिरी नई लाट को देखकर एक बार अपने होंठों पर जीभ फेरी फिर आगे बोली- 'भाई ये प्याज-व्याज तो चोंचले हैं तुम लोगों के। हम लोगों को देखो। एक ही फेवरिट डिश। हजारों-लाखों सालों से चली आ रही है। न मैन्यू बदला। न अंदाज। सर्वत्र उपलब्ध। न बीपीएल कार्ड की जरूरत न एपीएल की। न चोर चुराये न डाकू ले जाये। न सडऩे का खतरा। न खराब होने का डर। न फ्रिज की जरूरत, न ओवन की। आदमी कुछ भी खाये, उसे कनवर्ट हमारी डिश में ही होना है। प्याज-लहसुन महंगा हो हमारी बला से। लेकिन तुम क्यों उदास हो। देखो दिसंबर खतम हो रहा है। किसी युवती की मादक अंगड़ाई की तरह ठंड अंग-अंग में चुभने लगी है। कितना रोमांटिक मौसम है। खास तौर से तुम कुत्ता समुदाय के लिए। अरे तुम्हें तो अपनी कुतिया को लेकर गोवा या शिमला निकल जाना चाहिए था। यहीं रहना था तो पटना के गांधी मैदान में रैली करते। आने वाले साल को 'अंतर्राष्ट्रीय कुत्ता वर्षÓ घोषित किए जाने की मांग करते... मगर तुम यहां मुंह लटकाये यहां घूरे के ढेर पर उदास बैठे हो। अच्छा बस इतना बता दो कि क्या तुम्हारी कुतिया किसी और के साथ भाग गई है या तुम्हारा पिल्ला पड़ोसी को पापा बोलता है। भगवान के लिए बता दो फिर मैं अपने प्रियतम के पास चली जाऊंगी। देखो कितनी देर से मेरा प्रियतम मैनहोल में युगल स्नान करने के लिए मुझे बुला रहा है।Ó
कुत्ते ने एक लंबी सांस ली और कहना शुरू किया- 'तुम्हें पता है कि किसी कुत्ते के लिए दुनिया की सबसे बड़ी सजा क्या है? उसे हड्डी से दूर कर देना। और हड्डी की सबसे बडी सजा है उसे लहसुन-प्याज से दूर कर दिया जाए। और मैं, एक कुत्ता होकर ये दोनों सजाएं एक साथ भोग रहा हूं। घोर नाइंसाफी है। पहले झुग्गी- झोपडिय़ों की जूठन में भी लहसुन-प्याज के छिलके के दर्शन हो जाते थे। लेकिन अब तो बंगलों के बाहर भी मूली और गोभी के पत्तों का पहरा है। अरे तुम क्या जाना कि दुनिया कितने तरह के स्वादों से भरी हुई है।Ó
कहते हुए कुत्ता बिना बल्ब वाले सट्रीट लाइट के खंभे के नीचे बैठ गया। पास ही किसी मैगजीन का फटा हुआ पेज पड़ा था। उस पेज पर प्याज की फोटो छपी थी और पीछे से गीत की आवाज आ रही थी- 'मैं तो एक ख्वाब हूं, इस ख्वाब से तू प्यार न कर!Ó