Monday, May 9, 2022

जब मोहल्ले में बुल्डोजर आया ------------------------- बात इतनी सी नहीं थी। कई क्विंटल की थी। रात तक सब ठीक था। मोहल्ले के लोग अपनी दिनचर्या पूरी करके जब सोने गए तो सब कुछ सामान्य था। लेकिन सुबह आंख खुली तो चौराहे पर एक बुल्डोज़र खड़ा देखा। उसे देखते ही सब चौंक पड़े। बुल्डोज़र दिखना अच्छा संकेत नहीं था। ये काली बिल्ली के रास्ता काटने या ज़रूरी काम से निकलते समय छींक देने से भी बड़ा अपशकुन था। बुल्डोज़र का मतलब यमदूत का मशीनी संस्करण। किसी वैध अपराधी या अवैध इमारत का एनकाउंटर। देखते ही देखते मोहल्ले वालों में कानाफूसी शुरू हो गई। "किसके कर्मों का फल है ये, जो हमारा चैन उड़ाने आया है?" "कल्लू कबाड़ी को दरोगा जी कई बार चोरी-चकारी छोड़ देने की वार्निंग दे चुके थे... आख़िर आ गई न शामत।" "खड़े-खड़े लफ्फाज़ी करने से कुछ न होगा...सोचो इस मुसीबत से कैसे बचा जाए।" "चीते की चाल, बाज़ की नज़र और बाजीराव की तलवार से बचना आसान है मगर बाबा के बुल्डोज़र से नहीं। तरकस से तीर निकल चुका है...अब लक्ष्य भेदकर ही लौटेगा।" जितने मुंह थे, उतनी बातें। पांच मिनट के बाद एक गली से लुंगी-बनियान पहने ढाई सौ का इनामी बाबू बजरंगी निकला। उसके हाथ में एक तख्ती थी, जिस पर लिखा था-'दुहाई हो...जान की दुहाई हो... मैं सरेंडर कर रहा हूं...मेरा एनकाउंटर न किया जाए।' बाबू को देखकर सबके मुंह से सिसकारी निकल गई। अभी इस बदनसीब की उमर ही क्या है। जुर्म की दुनिया में आए एक साल भी तो नहीं हुआ। बेचारा न कुछ कमा पाया...न बचा पाया। बेचारे का कैरियर बनने के पहले ही उजड़ रहा है। भगवान ऐसा अपराधी किसी को न बनाए। लेकिन बाबू पर इन सारी संवेदनाओं का कोई असर नहीं हुआ। वह अपनी मंज़िल अर्थात मोहल्ले की पुलिस चौकी की ओर बढ़ता ही गया। चौकी में एकमात्र सिपाही मौजूद था। उसने बाबू का सरेंडर नामा स्वीकार करने से मना कर दिया। कहा कि ये अधिकार दरोगा जी का है। चूंकि उन्होंने भी सवेरे-सवेरे बुल्डोज़र के दर्शन कर लिए हैं। अतः वह भी सरेंडर करने इंस्पेक्टर साहब के पास गए हैं। सुना है इंस्पेक्टर साहब के घर के बाहर भी बुल्डोज़र देखा गया है। इसलिए कोई ठिकाना नहीं कि वह भी एसपी साहब के यहां गए हों। बेचारा बाबू अपनी बदकिस्मती पर आंसू बहाता हुआ अब पुलिस चौकी के बाहर अनशन कर रहा है। इस बीच बुल्डोज़र के संक्रमण से जो अन्य प्रभाव पड़े, वे इस प्रकार हैं- दूध में पानी मिलाने वाले पुत्तन घोसी ने प्रायश्चित स्वरूप अपने ग्राहकों को घी और मक्खन देने का निर्णय ले लिया। मोहल्ले के डॉक्टर झटका के नर्सिंग होम में भी डिस्काउंट लागू कर दिया गया। पैर की हड्डी टूटने पर हाथ का प्लास्टर मुफ़्त। इलाज के दौरान मौत हो जाने पर एंबुलेंस के साथ कफ़न सहित अंतिम संस्कार सामग्री मुफ़्त। सिर्फ़ यही नहीं, बुल्डोज़र की कृपा से मोहल्ले के खुले मैनहोलों में ढक्कन लग गए। स्ट्रीट लाइट के खराब बल्ब बदल गए। बिजली चोरी करने वालों ने खंभे से अपनी-अपनी कंटिया उतार ली। मोहल्ले में टीवी के न्यूज़ चैनलों या ओटीटी पर गूंजती वेब सिरीज़ की आवाज़ों की जगह चैन की बंसी बजती सुनाई देने लगी। लड़कों ने नशा न करने की सामूहिक प्रतिज्ञा कर डाली। लड़कियां और महिलाएं बिना छिड़े स्कूल-कॉलेज और मार्केट जाने लगीं। फेरी वाले बिना डंडी मारे सब्ज़ी और फल तोलने लगे। काली कमाई करने वाले व्यापारी ख़ुद अपने बही-खाते जीएसटी कार्यालय में जाकर जमा कर आए। और तो और, जानवरों में भी तमाम सुधार देखे गए। कुत्ते अनुशासित हो गए। उन्होंने टाइम टेबल बना लिया। हफ्ते के पहले तीन दिन भौंकते और बाद के तीन दिन काटते। इतवार को छुट्टी मनाते। आवारा गायों ने भी यातायात नियमों का पालन शुरू कर दिया और चौराहे या सड़क के बीच बैठना छोड़ दिया। तीन दिन बाद। अचानक एक आदमी आया। बुल्डोज़र पर बैठा। उसे स्टार्ट किया और लेकर जाने लगा। मोहल्ले वाले हैरत में। उससे पूछा तो जवाब मिला, "यहां का काम ख़त्म हो गया। अब इसे दूसरे मोहल्ले में रखने जा रहा हूं।" - कमल किशोर सक्सेना

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